शुक्रवार, 9 मई 2008

कल के कवि



सुश्री सी.आर.राजश्री बीएस.सी, एम.ए. (हिन्दी), एम.फिल, पी.जी.डी.टी हैं और दक्षिण भारत के कोयंबत्तूर जिले में डॉ.जी.आर.दामोदरन विज्ञान महाविद्यालय में विज्ञान, कामर्स और प्रबंधन के प्रथम वर्ष के छात्रों को द्वितीय भाषा के तौर पर हिन्दी पढ़ाती हैं। वह एक शिक्षिका ही नहीं, कवयित्री और लेखिका भी हैं। विज्ञान, कामर्स और प्रबंधन के क्षेत्र में अपने कैरिअर को बनाने की शिक्षा प्राप्त करने आए छात्रों में राजश्री जी साहित्य के प्रति ललक पैदा करने, अच्छा साहित्य पढ़ने और साहित्य लेखन में अभिरुचि जाग्रत करने के प्रयास अपने महाविद्यालय में निरंतर करती रहती हैं। आज घर-परिवार और शिक्षण संस्थानों में साहित्य के प्रति कोई गंभीर चिंता और उत्साह नहीं रहा है, जिसके चलते नई पीढ़ी में साहित्य के प्रति कोई खास रुझान हमें दिखलाई नहीं देता। जो अभिभावक और अध्यापक इस रुझान को बच्चों में पैदा करने की कोशिश करते हैं, वो नि:संदेह एक बड़ा काम कर रहे हैं। राजश्री जी ने अपने महाविद्यालय में बी काम और बी बी एम के प्रथम वर्ष के छात्रों को कविताएं लिखने के लिए प्रेरित किया और उन्हें एक घंटे का समय दिया। कुछ छात्र जो कविताएं लिखने में हिचकिचा रहे थे, उन्हें मिलकर काव्य-सृजन करने के लिए प्रेरित किया। और देखिए करिश्मा कि उनकी मेहनत सफल हुई। जो कविताएं इस प्रयास में सामने आईं, वे विस्मत करने वाली थीं। उनमें से कुछ कविताएं हम “नये कदम-नये स्वर” के इस अंक में प्रकाशित कर रहे हैं। विद्वानों को ये अपरिपक्व और अनगढ़ -सी दीख सकती हैं, पर यह अपरिपक्वता और अनगढ़ता अभ्यास से और अग्रजों से मिलने वाले प्रोत्साहन और प्रेरणा से धीरे-धीरे दूर हो सकती है। और कौन नहीं जानता कि हर लेखक-कवि अपने शुरुआती दौर में ऐसी ही अपरिपक्वता और अनगढ़ता से गुजरता है। इस नई पीढ़ी में ही कल के लेखक, कवि, कलाकार छुपे हैं। बस, ज़रूरत है- उचित हवा, धूप और पानी की।

कोयल
दीपिका
बी काम(प्रथम वर्ष)


कोयल की आवाज मीठी
लगती सुबह सबको भली
भर देती सब के मन में खुशहाली
कर बैठते हम बातें कुछ निराली

हे कोयल किसने तुझे गीत सिखाया
तूने जैसे सबके मन को है लुभाया
काश! हम तुझे देख पाते
बधाई देने तुम्हें हम मिलने आते

किसका है अब डर तुझे
हमारी शक्ति है साथ, न छुप अब पत्तों में


बदलते रिश्ते
हिमांशु गुप्ता
(बी काम)


ज़िन्दगी हर पल लेती है इम्तिहान
चाहे ले ही क्यों न ले मेरी जान
जिनसे की वफा उम्मीद, वही बेवफ़ा निकले
दोस्त दोस्त न रहे दुश्मन बन गए
अब मैं तरसता हूँ, किसी एक से बात करने के लिए
कोई एक तो हो जिससे अपने मन की बात कह सकूँ
रि्श्तों का मतलब ही भूल गया हूँ
इतना धोखा खाया है की अब
रिश्तों से भरोसा ही उठ गया है
उसको जिसे मैंने माना था मेरा हमसफर
उसी ने दगा दे दिया और अपनी बेवफाई दिखाई
समझता था जिसको अपने दिल के करीब
उसने ऐसा सिला दिया के दिल दहल गया
न भरोसा रहा अब किसी पर, न ही रहा है विश्वास
इन बदलते रिश्तों से रहना चाहता हूँ मैं दूर
शायद तनहाई में ऐसा कुछ हो जाए
जो रिश्तों का महत्व को फिर से समझा सके
और रिश्तों पर विश्वास करना मुझे आ जाए
क्योंकि यह रिश्ते होते हैं अनमोल
और जिंदगी कायम है इन्हीं रिश्तों पर
पूरी कायनात टिकी है, रिश्तों के बलबूते पर,
इसलिए मैं रिश्तों की कदर करता हूँ
और रिश्तों को सोच समझकर जोड़ता हूँ।

तू ही बता मेरे मन
निहाल और अमृत(बी बी एम- प्रथम वर्ष)


जिंदगी के हर पल में मेरे साथ देने वाले।
मेरे चेहरे के भाव प्रकट करने वाले।
क्या मेरा आने वाला कल इस पल की तरह सुखमय होगा।
तू ही बता मेरे मन।
जिंदगी की भाग–दौड़ व्यस्त कामकाज
बना देती है मुझे अधिकांश तन्हा
किस पर विश्वास करूँ तुमसे ज्यादा
क्योंकि तू ही है मेरा दोस्त और मेरी साया
सच है न थे, तू ही बता मेरे मन।
तू ही है मेरा आधार
तुझ से कुछ भी न है छुपा क्या बुरा क्या भाला
तू ख्यालों में मेरे साथ निभाता
बन मुझे सही राह दिखाता
सच है न ये तू ही बता मेरे मन।

तीन कविताएं
रामाचन्द्रन वी(बी काम-प्रथम वर्ष)


(1) धरती
वन से बादल, बादल से वन
खिल उठा इनसे धरती का यौवन
चाँद-सितारे चमकीले आभूषण
फूल रंगीले लूट लेते हैं मन
नदियों-झरने इसका बचपन
मदमस्त हुआ सब का तन-मन
आक्रमण कर बैठा अब इसपर ‘प्रदूषण’
करते हैं जिस कारण अब क्रंदन
धरती और मानव का है अटूट बंधन
आओ मिलकर करें इसका हम रक्षण

(2)लक्ष्य

जीवन का एक लक्ष्य बनाओ
उसकी ओर फिर बढ़ती जाओ
अपनी लगन और परिश्रम द्वारा
पहुँच अपनी लक्ष्य तक बढ़ाओ
सर्वप्रथम लक्ष्य को तय करना
उसकी प्राप्ति हेतु यत्न फिर करना
दृढ़ अपनी लक्ष्य पर सदा रहना
निडर हो बाधाओं का सामना करना
लक्ष्यवाले निश्चय ही सफलता पाते हैं
लक्ष्यहीन इससे वंचित रह जाते हैं

(3)गुरु वन्दना
(शिक्षक दिवस के अवसर पर)

मेरी अच्छी टीचर जी
तुमने यह मुझको ज्ञान दिया
मेहनत कर आगे बढ़ने का
सदा मुझे वरदान दिया
मैं जब (महा)विद्यालय में आया था
चिन्तित आर घबराया था
आपने मुझको थाम लिया
फिर कभी न मैंने लड़खड़ाया था
जब कठिनाइयों ने मुझको घेरा था
निराशा ने मुझको रूलाया था
आपने मेरे आँसू पोंछे थे
हिम्मत का पाठ पढ़ाया था
कभी-कभी जो आपने मुझे डाँटा था
मेरी गलती समझाकर आपने मुझे समझाया था
विद्या और मेहनत की दीप जो तुमने
मन में मेरे जलाया था
इसकी ज्योति जग में फैले
यह ही मेरी अभिलाषा है
सच्चाई के पद पर चलकर
लक्ष्य हमाको पाना है
लेकर आशीर्वाद तुम्हारा
आगे बढ़ने जाना है।
मेरी दुआ है मेरी मैडम
कि आप हमेशा खुश रहें
रब से जो भी माँगा है
वो सब कुछ जीवन में प्राप्त करें
मेरी अच्छी टीचर जी
आपने मुझको ज्ञान दिया
मेहनत कर आगे बढ़ने का
सदा मुझे वरदान दिया

मेरे प्रिय भाई
रश्मि एस नाहर(बी काम-प्रथम वर्ष)

मेरा छोटा-सा प्यारा-सा नटखट भाई
हम बहिनों का दुलारा है यह भाई
हो तुम सबसे छोटे और न्यारे
माता पिता, घरवालों के आँखों के तारे

बहिनों को बड़ा सताते हो तुम
दोस्तों के संग लड़ते हो तुम
बचकानी हरकत सदा करते हो तुम
अपनी जिम्मेदारियों भी निभाते हो तुम
समय-समय पर बड़ों जैसा व्यवहार करते हो तुम
कभी-कभी हमसे रूठ भी जाते हो तुम
मगर फिर जल्द ही मान जाते हो तुम
संग तुम्हारा हमें बहुत अच्छा लगता है
तुम-सा भाई किसी को शायद नहीं मिल सकता है

कुछ संयुक्त प्रयास


संगीत
स्नेहा पिल्लई,निखत अमृत,मानव परमांदक
निहाल उत्तमानी,जुज़र एम चतरीवाला(बी बी एम)

सात सुरों का है ये संगम
सुनकर जिसे भूल जाते हैं सब गम
हर दुखियारों का हैं ये मरहम
सात सुरों का यह अद्भुत संगम

गीत, कविता हो या भजन कीर्तन,
सभी को करते है आनंदित और मगन,
जिसकी साधना में लगती है लगन,
सात सुरों का यह भव्य संगम।

संगीत की कोई सीमा नहीं है
संगीत का कोई मजहब नहीं है
हर कोई इसे अपना सकता है
हर किसी के मन का ये छू सकता है
सात सुरों का है ये संगम
सात सुरों का है ये भव्य संगम
सात सुरों का है ये मधुर संगम

मानव

निखत




स्नेहा पिल्लई


प्रकृति
स्नेहा पिल्लई,निखत अमृत,मानव परमांदक
निहाल उत्तमानी,जुज़र एम चतरीवाला,ऐश्वर्या
(बी बी एम-प्रथम वर्ष)

नीला गगन, खुला आसमान, सनसनाती पवन
हरी ज़मीन, बहती नदी, बेहलाती सबका मन
चिडि़यों की चहचहाहट, कोयल की कूक
सुनते ही भुला देते सब दुख
पर्वत की शोभा, झरनों की झंकार
धरती में टंकार
जंगल में गूँज जानवरों की
व सूखे-बिखरे पत्तों की
खामोशी बहुत कुछ कहती
प्रकृति की यही है नियति
मत तोड़ो इस खामोशी को…
चलो, बचाए प्रकृति को।
आओ मिलकर बचाने बढाये हम कदम
इस सिलसिले में हमारे बहक न जाए कदम
मिलकर आओ यह ले शपथ
प्रकृति को प्रदूषण से बचाकर रखे इसे स्वस्थ।

ऐश्वर्या


अनुरोध : आपको भी यदि अपने आसपास, अपने घर-परिवार, स्कूल-कालेज में नये सृजन की आहट सुनाई/दिखाई देती हो, तो उसे अवश्य प्रोत्साहित करें और हमें भी बताएं। “नये कदम-नये स्वर” में सृजन की नई आहटों का स्वागत है।