मंगलवार, 8 जुलाई 2008

नया कवि


नये कदम - नये स्वर’ में इसबार हम आपका परिचय करवा रहे हैं- एक नई संवेदनशील और प्रतिभावान कवयित्री अंजना बख्शी से। यूँ तो अंजना पिछ्ले कुछ वर्षों से कविता लिख रही हैं और उनकी कविताएं हिन्दी की शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं में यथा- कथादेश, कादम्बिनी,अक्षरा, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा आदि में छ्पकर चर्चा में रही हैं, पर उनकी कविताओं का पहला संग्रह “गुलाबी रंगों वाली वो देह” शीर्षक से इसी वर्ष ‘शिल्पायन प्रकाशन’ वेस्ट गोरखपार्क, शाहदरा, दिल्ली-110032 से प्रकाशित हुआ है। मासूम चेहरे वाली यह बेहद संवेदनशील कवयित्री बचपन में ही पिता को खो देने के बाद से ही रोटी के लिए निरंतर संघर्ष करती रही है। आज भी उसका यह संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। रोजी-रोटी के संघर्ष के साथ-साथ अपने अध्ययन को निरंतर जारी रखने की जद्दोजहद के बीच यह युवा कवयित्री अपने अस्तित्व की सार्थक पहचान की लड़ाई भी अकेले अपने दम पर लड़ती रही है। अपने अध्ययन के सिलसिले में दमोह(मध्य प्रदेश) से चलकर दिल्ली आईं अंजना बख्शी वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू यूनीवर्सिटी में अनुवाद में शोध कार्य कर रही हैं। पत्रकारिता एवं जनसंचार में मास्टर डिग्री प्राप्त हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद पाली, उड़िया, उर्दू, तेलगू और पंजाबी भाषा में हो चुके हैं। ग्रामीण अंचल पर मीडिया का प्रभाव, हिंदी नवजागरण में अनुवाद की भूमिका, अंतरभाषीय संवाद, संपादन की समस्याएं, पंजाबी साहित्य एवं विभाजन की त्रासदी आदि विषयों पर इनके लघु शोध प्रबंध हैं। इसके अतिरिक्त पंजाबी उपन्यास ‘बेबिसाहे’ का हिंदी अनुवाद भी किया है। महिला शोषण के खिलाफ नाटकों और आंदोलनों में भी इनकी सहभागिता दमोह से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक रही है।

इस संवेदनशील और प्रतिभावान कवयित्री की कुछ कविताओं को हम ‘नये कदम – नये स्वर’ में प्रकाशित कर हिंदी के विशाल कविता प्रेमियों के सम्मुख रख रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि आप भी इन कविताओं को पढ़कर इस ‘नये कदम’ और ‘नये स्वर’ का स्वागत करेंगे-


पांच कविताएं/अंजना बख्शी

(1)बेटियाँ


बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैं
जो बुनती हैं एक शाल
अपने संबंधों के धागे से।

बेटियाँ धान-सी होती हैं
पक जाने पर जिन्हें
कट जाना होता है जड़ से अपनी
फिर रोप दिया जाता है जिन्हें
नई ज़मीन में।

बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं
जो बजा करती हैं
कभी पीहर तो कभी ससुराल में।

बेटियाँ पतंगें होती हैं
जो कट जाया करती हैं अपनी ही डोर से
और हो जाती हैं परायी।

बेटियाँ टेलिस्कोप-सी होती हैं
जो दिखा देती हैं– दूर की चीज़ पास।

बेटियाँ इन्द्रधनुष-सी होती हैं, रंग-बिरंगी
करती हैं बारिश और धूप के आने का इंतजार
और बिखेर देती हैं जीवन में इन्द्रधनुषी छटा।

बेटियाँ चकरी-सी होती हैं
जो घूमती हैं अपनी ही परिधि में
चक्र-दर-चक्र चलती हैं अनवरत
बिना ग्रीस और तेल की चिकनाई लिए
मकड़जाले-सा बना लेती हैं
अपने इर्द-गिर्द एक घेरा
जिसमें फंस जाती हैं वे स्वयं ही।

बेटियाँ शीरीं-सी होती हैं
मीठी और चाशनी-सी रसदार
बेटियाँ गूँथ दी जाती हैं आटे-सी
बन जाने को गोल-गोल संबंधों की रोटियाँ
देने एक बीज को जन्म।

बेटियाँ दीये की लौ-सी होती हैं सुर्ख लाल
जो बुझ जाने पर, दे जाती हैं चारों ओर
स्याह अंधेरा और एक मौन आवाज़।

बेटियाँ मौसम की पर्यायवाची हैं
कभी सावन तो कभी भादो हो जाती हैं
कभी पतझड़-सी बेजान
और ठूँठ-सी शुष्क !

(2) अम्मा का सूप


अक्सर याद आता है
अम्मा का सूप
फटकती रहती घर के
आँगन में बैठी
कभी जौ, कभी धान
बीनती ना जाने
क्या-क्या उन गोल-गोल
राई के दानों के भीतर से
लगातार लुढ़कते जाते वे
अपने बीच के अंतराल को कम करते
अम्मा तन्मय रहती
उन्हें फटकने और बीनने में।

भीतर की आवाज़ों को
अम्मा अक्सर
अनसुना ही किया करती
चाय के कप पड़े-पड़े
ठंडे हो जाते
पर अम्मा का भारी-भरकम शरीर
भट्टी की आँच-सा तपता रहता
जाड़े में भी नहीं थकती
अम्मा निरंतर अपना काम करते-करते।

कभी बुदबुदाती
तो कभी ज़ोर-ज़ोर से
कल्लू को पुकारती
गाय भी रंभाना
शुरू कर देती अम्मा की
पुकार सुनकर।

अब अम्मा नहीं रही
रह गई है शेष
उनकी स्मृतियाँ और
अम्मा का वो आँगन
जहाँ अब न गायों का
रंभाना सुनाई देता है
ना ही अम्मा की वो
ठस्सेदार आवाज़।

(3) कराची से आती सदाएँ


रोती हैं मजारों पर
लाहौरी माताएँ।

बांट दी गई बेटियाँ
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सरहदों पर।

अम्मी की निगाहें
टिकी हैं हिन्दुस्तान की धरती पर
बीजी उड़िकती है राह
लाहौर जाने की।

उन्मुक्त विचरते पक्षियों को देख-देख
सरहदें हो जाती हैं बाग़-बाग़।

पर नहीं आता कोई
पैगाम कश्मीर की वादियों से
मिलने हिन्दुस्तान की सर-ज़मीं पर।

सियासी ताकतों और नापाक इरादों ने
कर दिया है क़त्ल
अम्मी-अब्बा के ख़्वाबों का
सलमा की उम्मीदों का
और मचा रही हैं स्यापा लाहौरी माताएँ
बेटियों के लुट-पिट जाने का
मौन ग़मगीन है
तालिबानी औरतों-मर्दों के
बारूद पे ढेर हो जाने पर।

लेकिन कराची से आ रही है सदाएँ
डरो मत...
मत डरो...
उठा ली है
शबनम ने बंदूक।

(4) औरतें


औरतें –
मनाती हैं उत्सव
दीवाली, होली और छठ का
करती हैं घर भर में रोशनी
और बिखेर देती हैं कई रंगों में रंगी
खुशियों की मुस्कान
फिर, सूर्य देव से करती हैं
कामना पुत्र की लम्बी आयु के लिए।

औरतें –
मुस्कराती हैं
सास के ताने सुनकर
पति की डांट खाकर
और पड़ोसियों के उलाहनों में भी।

औरतें –
अपनी गोल-गोल
आँखों में छिपा लेती हैं
दर्द के आँसू
हृदय में तारों-सी वेदना
और जिस्म पर पड़े
निशानों की लकीरें।

औरतें –
बना लेती हैं
अपने को गाय-सा
बंध जाने को किसी खूंटे से।

औरतें –
मनाती है उत्सव
मुर्हरम का हर रोज़
खाकर कोड़े
जीवन में अपने।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
रखकर करवाचौथ का व्रत
पति की लम्बी उम्र के लिए
और छटपटाती हैं रात भर
अपनी ही मुक्ति के लिए।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
बेटों के परदेस से
लौट आने पर
और खुद भेज दी जाती हैं
वृद्धाश्रम के किसी कोने में।

(5) रुको बाबा


जख़्म अभी हरे हैं अम्मा
मत कुरेदो इन्हें
पक जाने दो
लल्ली के बापू की कच्ची दारू
जैसे पक जाया करती है भट्टी में।

दाग़ अभी गहरे हैं बाबा
मत कुरेदो
इन्हें सूख जाने दो
रामकली के जूड़े में
लगे फूल की तरह।

जख़्म अभी गहरे हैं बाबा
छिपकली की कटी पूंछ की तरह
हो जाने दो कई-कई
रंगों में परिवर्तित।

क्षणभर तो रुको बाबा
झाँक लूँ अपने ही भीतर
बिछा लूँ
गुलाबी चादर से सज़ा बिस्तर
लगा लूँ सुर्ख़ गुलाब-सा तकिया
और रख लूँ
सिरहाने पानी की सुराही
और मद्धिम-मद्धिम आँच
पर जलती सुर्ख़
अंगीठी।
00
जन्म : 5 जुलाई 1974, दमोह(मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम. फिल. (हिन्दी अनुवाद), एम.सी.जे. (जनसंचार एवं पत्रकारिता)
प्रकाशन : कादम्बिनी, कथादेश, अक्षरा, जनसत्ता, राष्ट्रीय-सहारा तथा अनेक राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। नेपाली, तेलेगू, उर्दू, उड़िया और पंजाबी में कविताएं अनूदित। “गुलाबी रंगोंवाली वो देह” पहला कविता संग्रह वर्ष 2008 में प्रकाशित।

सम्मान : ‘कादम्बिनी युवा कविता’ पुरस्कार, डॉ. अम्बेडकर फैलोशिप सम्मान।
सम्प्रति : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में शोधरत।
संपर्क : 207, साबरमती हॉस्टल
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी
नई दिल्ली–110067
ईमेल : anjanajnu5@yahoo.co.in

27 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

बहुत ही बढिया ब्लाग बनाया है आपने और उसमें स्तरीय सामाग्री भी डाला है ।

धन्यवाद
यह ब्लाग फायर फाक्स में टोटल गारबेज दिख रहा है आपसे अनुरोध है कि इसे सुधार लेवें इसके लिये यदि आप चाहें तो लागईन - डेशबोर्ड - लेआउट - एडिट एचटीएमएल - कोड में जस्‍टीफाई खोजें व उसे लेफट में बदल देवें । इससे फायर फाक्‍स में आपके टेक्स्ट दिखने लगेंगें ।


आरंभ - छत्तीसगढ का स्पंदन

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

फिर रोप दिया जाता है जिन्हें
नई ज़मीन में।
थोड़ा अटपटा सा..

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कवितायें हैं या हमारे आस पास की विषमताओं की सच बयानी हैं...वाह...पाँचों की पाँचों कवितायें एक से बढ़ कर एक हैं...कहीं गहरे उतर कर उदास कर जाती हैं...बहुत संवेदनशील दृष्टि से देखा है कवयित्री ने अपने आसपास के परिवेश और घटनाओं को...इनकी जितनी प्रशंशा की जाए कम है...कहना होगा की बरसों बाद इतनी संवेदनशील कवितायें पढने को मिली हैं...बेटियाँ और औरतें दोनों रचनाएँ लंबे समय तक मानस पटल पर अंकित रहने वाली हैं....बहुत खूबसूरत.
इतनी अच्छी कविताओं के लिए अंजना जी आप को बहुत बहुत बधाई.
नीरज

सतीश पंचम ने कहा…

वाकई में बहुत संवेदनशील रचनाएं हैं, कही कहीं तो लगता है कि ...हां यही तो कहना चाहते हैं हम लेकिन शब्द ठहर जाते हैं। अच्छा लगा...जारी रखें।

बेनामी ने कहा…

अंजना बख्‍शी की कविताएं पढ़ कर दिल गार्डन गार्डन हो गया। एक मन को मथता सा अहसास। यादों को कुरेदता। सबका बचपन पर आपने अपनी कविताओं में बखूबी पकड़ लिया, या कहें कि उकेर दिया।
ब्‍लॉग सार्थक हो गया अंजना की कविताओं से। कविताओं ने स्‍मृतियों में खलबली मचा दी है। नारी मन की थाह को सहेजती कविताएं।
ऋचा नीरव अपनी खोज में बखूबी सफल हुई हैं।
एक बार फिर अंजना बख्‍शी के काव्‍य जीवन की सफलता के लिए मंगलकामनाएं, वैसे जैसी कविताएं हैं, उनके लिए किसी कामना की आवश्‍यकता नहीं है. वे खुद में संपूर्ण हैं।
- अविनाश वाचस्‍पति

बेनामी ने कहा…

ॠचा तुम्हारा जवाब नहीँ ।अंजना बख्शी की कविताएँ बहुत परिपक्व हैं, तपती धूप में फुहार -सी

--
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
प्राचार्य केन्द्रीय विद्यालय हज़रतपुर फ़ीरोज़ाबाद (उ.प्र.) 283103
mobile -09319805777 res.05612-276212

बेनामी ने कहा…

Nice blog...shubhkaamnaayen

-sargam_gaa@yahoo.co.in

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

रुचि तुम अद्भुत काम कर रही हो. मेरा आशीर्वाद है कि तुम निरंतर इस माध्यम से नये नये कवियों प्रकाश में लाओ. अंजना की कविताएं उल्लेखनीय हैं. तुम दोनों को बधाई.

चन्देल

Udan Tashtari ने कहा…

कवयित्री अंजना बख्शी से परिचय करवाने का बहुत आभार. बहुत ही भावपूर्ण रचना है.

कथाकार ने कहा…

अंजना की कविताएं बेहद मार्मिक और जीवंतता लिये हैं. बेटियां, अम्‍म, बाबा, सचमुख्‍ सुबह सुबह उदास कर गयी ये कविताएं, अंजना के लंबे और सार्थक लेखकीय जीवन के लिए खुभकामनाएं
अंक बहुत सुंदर बनाया है.
सूरज

ॠचा ने कहा…

कवयित्री अंजना बख्शी और अपनी ओर से आप सभी का धन्यवाद कि आपने इस पोस्ट और इसमें छ्पी कविताओं को इतना सराहा। भविष्य में भी आपका यह स्नेह-प्यार बना रहेगा, ऐसी आशा करती हूँ।

note pad ने कहा…

ऋचा , यह बेहतरीन काम किया ।
बहुत मार्मिक कविताएँ पढने को मिलीं । बहुत खूब !
सुजाता

बेनामी ने कहा…

प्रिय ऋचा ,
आपका ब्लॉग "नये कदम नये स्वर "देखती रहती हूँ। सराहनीय काम कर रही हो ।
तुम्हारा उत्साह देख कर मन आश्वस्त होता है ।

चाहती हूँ तुम चोखेर बाली भी देखो , पढो और अपनी प्रतिक्रिया दो । चाहो तो इसका हिस्सा बनो और अन्य साथियों को भी इसके लिए लिखने को कहो । अच्छा होगा कि स्त्री- विमर्श पर लिखने वाले यहाँ आकर अपनी पहचान बनाए और कुछ योगदान हमारे काम में कर सकें ।

स्नेह सहित

सुजाता


CHOKHER BALI
sandoftheeye.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

'' नए क़दम नए स्वर '' से प्रथम परिचय कराने के लिए ऋचा जी को बहुत बहुत धन्यवाद। हमारे मरहूम दोस्त सुदर्शन फ़ाक़िर का एक शेर है -
“ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा”
ज़िन्दगी को क़रीब से देखने की इसी क्षमता ने अंजना बख्शी को ऐसी दृष्टि दी है जो चेहरों के आर पार देखकर अनुभव का ऐसा विरल दृश्य रच देती है जो हमें विकलता के नए संसार में ले जाता है। क़लम की यह ताक़त और सृजन की यह गरिमा हमारी जड़ होती संवेदना को जाग्रत करने में सक्षम है। हमारे वरिष्ठ रचनाकारों का कहना है कि समकालीन हिन्दी कविता लगातार अपना सामाजिक आधार खोती जा रही है। उसे बचाने के लिए ऐसी ही कविताओं की ज़रूरत है। ऐसी सारगर्भित कविताओं को सामने लाने के लिये ऋचा जी को हर्दिक बधाई।
--
Devmani Pandey (Poet)
A-2, Hyderabad Estate
Nepean Sea Road, Malabar Hill
Mumbai - 400 036
M : 98210-82126 / R : 022 - 2363-2727
Email : devmanipandey@gmail.com

बेनामी ने कहा…

these are great poems by anjana bakhshi. i wish i could meet her and talk to her. i wish her all success in life.

बेनामी ने कहा…

I know inside of Anjana as nobody else and i can feel the pain of her heart in her words.
If the words come from heart it definately touches the heart
Artist can truly empathise with Others because he has felt the pain of pinching shoes.

Wishing GoodLuck and a Bright future and all the happiness in life.





www.MysticHealing.Net
www.MysticBlog.Net

बेनामी ने कहा…

I have gone through your poems.congrates on blog arrival. Your poems have same passion for girlhood as earlier too I had seen durin your attachment with Samkaleen Abhivyakti.
Hari Shanker Rarhi.

newfashionupdate ने कहा…

jee maine aapka blog pda bhut hi badia hai .....ye jankar badi khushi hui ki aapki ruchi kavita mai hai.....aj bhut km log hai jo hindi kavitao keprati sneh bhao rkhte hai....

Ashk ने कहा…

PRIY RICHA
APKE BLOG KA PARICHAY APKE PAPAJEE AUR MERE PRIY MITRA SUBHASH NEERAV SE MILA.
BLOGS KEE GALIYON MEIN MAINE KADAM RAKHA HEE HAI.JAB TUM NANHEEN-SEE THEE TAB SOCHA NAHIN THAA KI EKDIN IS SANSAAR MEIN PITA KE CHARAN-CHIHNON PAR CHALKAR ITNEE SHRETH RACHNAON KO HARE LIYE SANGRHIT KAROGI.
TUMHEN BAHUT-BAHUT ASHIRVAAD!BADHAI!
ANJANA BAKSHEE KEE ATYANT PRABHAVSHALEE KAVITAYEN PARHIN.SANGHRASHON SE JHUTATE HUE ANJANA NE JIN BHAVNAON KO ABHIVYAKT KIYA HAI USASE YTHARATH KEE MITTEE KEE SUGANDH MAHKATEE HAI.,JISNE PURE KE PURE PARIVESH KA BIMB HAMARE SAMAKSH PRASTUT KAR DIYA HAI.BHAVON AUR SHABDON KA ESA MILAN ADBHYT HAI ! ANJANA KO BADHAI!

बेनामी ने कहा…

ॠचा जी
मैं आज आपके ब्लाग पर कुछ समय बिताया। एक अच्छे प्रयोग के लिए बधाई। खासकर कविताओं के लिए, जिन्हें आप पेश कर रहीं हैं। आज दिल के करीब इस कविता को पढ़कर मन भावुक हो उठा-

बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैं
जो बुनती हैं एक शाल
अपने संबंधों के धागे से।

बेटियाँ धान-सी होती हैं
पक जाने पर जिन्हें
कट जाना होता है जड़ से अपनी
फिर रोप दिया जाता है जिन्हें
नई ज़मीन में।

धन्यवाद।



गिरीन्द्र
अनुभव

बेनामी ने कहा…

पहली बार आपके ब्‍लाग पर आई। बहुत अच्‍छा और स्‍तरीय है। अंजना बख्‍शी से मुलाकात कराने के‍ लिए आभार। अंतरमन से लिखा गया काव्‍य हैं उनका। संकलन आएगा तो जरूर पढ़ूंगी।

बेनामी ने कहा…

ऋचा जी,
नमस्‍कार
आपका ब्‍लॉग बहुत अच्‍छा लगा.


Navyavesh NAVRAHI
Magazine Section
DAINIK BHASKAR
SCO-16, Puda Complex, Ladowali Road, JALANDHAR (PB) INDIA.
e-mails
navrahi@gmail.com,nnavrahi@hotmail.com
Mobile- +91 98150 70059
office- +91 181 3985364, 65, 66, 67

बेनामी ने कहा…

its really nice to see Anjana's beautiful poems.......

शरद कोकास ने कहा…

अंजना जी से अभी 11,12,13 सितम्बर को भोपाल मे मुलाकात हुई । यह लिंक उन्हीने भेजा । वहाँ उनका बेहतरीन आलेख सुना और अब यहाँ यह उत्कृष्ट कवितायें । अच्छा लगा ।

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

अंजना जी को इधर-उधर कुछेक प्रतिष्ठित पञिकाओं में पहले भी पढ़ा है. चयनित कविताओं उम्‍दा है. एक बारगी में ही प्रभावित करती हैं. रचनाओं में पर्याप्‍त श्रम और परिपक्‍वता भी स्‍पष्‍ट परिलक्षित होती है. यूं भी अंजना जी युवा पीढ़ी की महत्‍वपूर्ण कवि रचनाकार हैं. महत्‍वपूर्ण यह भी है कि किसी अमर्श-विमर्श तक सीमित न होकर उनका कविता संसार पर्याप्‍त विस्‍तृत है. और संभवतः यही एक रचना/रचनाकार की सफलता है.
प्रकाशन एवं चयन के लिए बधाई एवं दीप पर्व की अनेक शुभकामनाओं सहित...
- प्रदीप जिलवाने, खरगोन म.प्र.

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

अंजना को यहां-वहां पञिकाओं में भी पढ़ा है. उनकी कविताओं में ताजगी है. प्रस्‍तुति के लिए आभार एवं अंजनाजी को बधाई.

बेनामी ने कहा…

अंजना को मै अभी कुछ ही समय से जान पाया हूँ नेट के जरिये हमारा परिचय हुआ और धीरे-धीरे हमारी पहचान काफी अच्छी हो गयी उसके फ़ोन पर हेल्लो कहने का वो अंदाज़ मानो सारी पहचान को नया स्वरूप प्रदान करता है मै जितना जानता हूँ उसमे मैंने महसूस किया की अंजना का उद्देश्य किसी भी शख्स के चेहरे पर छायी उदासी की लहरों को पल भर में दूर करना इसके लिए भले ही किसी भी तनाव में हो लेकिन हमेशा हंसती रहती है सचमुच अंजना तुम्हारे अंदाज़ को जो भी महसूस कर सकता है वो उसकी गहराईयों से इस बात को जान सकता है की तुम एक साफ़ दिल की जिंदादिल इन्सान हो लेकिन मेरा भी उद्देश्य है की अंजना तुम हमेशा खुश रहो तुम्हारी कविताओ को गहराईयों को मैंने समझ लिया है
-आलोक श्रीवास्तव